Sunday, October 31, 2010

****कौशिश****

जो दर्द देते थे हमको 
वो दिल से बाहर हो बैठे

अपना समझकर हम, 
गैरो के लिये रो बैठे

उनका साथ देने मे, 
अपनो को भी  खो बैठे

उनको बचाने की कौशिश मे, 
खुद को ही डूबो बैठे

उनके होने की आरजू मे, 
खुद से भी हाथ धो बैठे 

पूजा तोमर 

Saturday, October 30, 2010


****आलम*****

सांसे थम सी गई थी 
जब सामने से यार हमारा गुजरा था 

लोग भी कहने लगे थे 
खुदा कसम क्या नज़रा गुजरा था  

गमो के मारे भी बोल उठे थे, 
अभी गली से इश्क़ का मारा गुजरा था  

हम तो 
जमाना 
 भूल ही गये थे, 
मेरे करीब से जब वो दोबारा गुजरा था  

हम तो पलको को गिरा भी न सके 
एक ही पल मे आलम सारा गुजरा था  

पूजा तोमर 

Wednesday, October 27, 2010

*****मेरा परिचय*****

मत पूछो मै क्या हूं?
मेरा परिचय देती है मेरी कलम 

जहां सबका  कारवा  होता है खत्म 
वही से बढते है मेरे कदम  

हर उस इन्सा की कद्र करती हूं
गैरो के लिये होती है जिसकी आंखे नम 

मै अभी अंजान हूं रास्तो से तो क्या?
जान जाऊगीं अभी ही तो लिया है जन्म 

हर शख्स काबिलयत रखता है 
कोई ज्यादा तो कोई कम 

किसी का साथ नसीब देता है 
तो किसी का निभा जाती है कलम 

जब भी करती हूं कुछ नया 
दिल कहता है "पूजा" तूझमे है दम 

पूजा तोमर 


Monday, October 25, 2010

****अन्धेरा**** 

जब भी सोचा तुम्हें भुला देंगे, 
किसी न किसी बहाने से याद करने लगते है

क्या पता अब भी तुम्हें मेरा इन्तज़ार हो 
यही सोचकर तेरी गली से गुज़रने लगते है

जब भी आता है बीता वक़्त याद हमे , 
खुश्क आंखो मे आंसु उभरने लगते है

कैसे हो जाते है लोग खाक मोहब्बत मे 
सच्चे आशिक तो और भी निखरने लगते है

जब कभी नाम तेरा आता है लबो पर, 
फ़िज़ा मे खुद-ब-खुद नगमे बिखरने लगते है

होता  है 
जब अन्धेरा कभी, 
आसमां के सितारे मेरे दिल मे उतरने लगते है

पूजा तोमर 

Saturday, October 23, 2010

****तमाशा****

आंखो ने ना देखी एक रात भी करार की 
क्या कहानी सुनाये हम तेरे इन्तज़ार की

हर शय प्यासी है तेरे एक दीदार की 
जन्नत से कम नही गली मेरे यार की 

मेरी ज़िन्दगी का तमाशा ही बन गया 
हद ना रही कोई मेरे एतबार की

तडपे है  माहिया हम बे आब की तरह 
हालत ना पूछ मुझसे दिले बेकरार की 

फ़ुर्सत मिले ज़माने से तो कर लेना गौर
दिल मे तेरे अवाज़ है बस मेरी पुकार की 

कोई नही यहां "पूजा" कदरदान दिल का 
कीमत लागाई जाती है दुनिया मे प्यार की  
पूजा तोमर 

Wednesday, October 20, 2010




****सुबह-शाम**** 

मेरी कहानी अजीब है, खुद ही अपनी जंग मे तमाम
होती रही 

सब रिशते टूट गए मगर फिर भी  नजरो से दुआ सलाम 
होती रही   

लगा कोई जानता  नही, पर मेरी मोहब्बत सारे आम 
होती रही 

उसकी अदा के जलवे तो देखो, सांसे भी उसकी गुलाम 
होती रही 

वो तो चला गया पर उसकी यादो मे सुबह-शाम 
होती रही 

पूजा तोमर 

Tuesday, October 19, 2010

****फ़ितरत**** 

अब नहीं कुछ उससे लेना-देना, 
हर कर्ज़ अदा कर चुके हैं हम 

अब बचने की सूरत ही नहीं, 
कातिल को रकम अदा कर चुके हैं हम   

अब कुछ नहीं पास बचा हमारे, 
सब निसार रहे वफ़ा कर चुके हैं हम 

अब किस की राह तके बता दो, 
हर शख्स को खफ़ा कर चुके हैं हम   

अब न होगी हमसे दोबारा यारों, 
एक बार जो खता कर चुके हैं हम 

अब उसको इल्जाम क्या देना, 
उसकी फ़ितरत का पता कर चुके हैं हम   

अब हो जायेगा जो होना है, 
हर बात का उससे गिला कर चुके हैं हम 

अब क्या उम्मीद करें , 
चाहत का खतम सिलसिला कर चुके हैं हम   

अब कुछ हासिल न होगा, 
यही सोचकर राह जुदा कर चुके हैं हम 

अब नहीं कोई वास्ता, 
इस दुनिया से खुद को गुमशुदा कर चुके हैं हम    

पूजा तोमर 

Friday, October 15, 2010


****मरहम**** 

तुम अपनी वफ़ा की नही, हम पर किये सितम की
बात करो

जो दिल मे निशां 
छोड गये उन कदम की 
बात करो

जिसने हमको तुमसे दूर किया जरा उस नये सनम की
बात करो

मेरे जख्मो की गहराई तो देखो फिर किसी मरहम की
बात करो

एक वही मतलब निकलता है, तुम करम या सितम 
की बात करो

पूजा तोमर 

Monday, October 11, 2010

****अग्नि -परीक्षा****

अब बसने दे मेरा घर बहुत दिल जलाकर 
देख लिया

अब मिलाने दे नजरो से नजरे बहुत नजरे चुराकर 
देख लिया


जो न देखा हमने सनम तुझसे दिल लगाकर 
देख लिया 

क्या होता है सच्चा प्यार तूझे अपना बनाकर 
देख लिया 

अब मुझे देने दे अग्नि -परीक्षा तुझे तो आजमाकर
देख लिया 

पूजा तोमर 

****भूले नही ****

यूं तो हमने वो शहर छोड दिया है 
पर आज भी उसका मका भूले नही 

कितने गुजरे हैँ इन राहोँ से अब तक
हम लेकिन उसके नक्शे-पा भूले नही 

जिसने खुद से ही अनजाना कर दिया   
उसकी वो कातिलाना अदा भूले नही 

अरे सुन ले ओ जाती हवा कह देना उसे 
तुझको हम आज भी ओ बेवफ़ा भूले नही 

उसको नही याद मेरा नाम तलक 
और एक हम है कि उसका पता भूले नही 

जिस वजह् से उसने रुसवा किया हमको 
आज भी करना हम वो खता भूले नही

पूजा तोमर 

Sunday, October 10, 2010

****मजहब****

क्या कहूं अपने मजहब की मेरा मजहब तो 
इन्सानियत है 

इसमे दुश्मन को भी दोस्त बनाने की 
काबिलियत है 

इसमे बडो जैसी समझदारी और बच्चो सी 
मसूमियत है 

इसको हर किसी मे इन्सान नज़र आता है यही इसकी 
खासियत है 

पूजा तोमर 

Tuesday, October 5, 2010

****बारिश**** 

हम हसीयत अपनी जमाने मे बढना चाहे 
एक मुसाफ़िर तेरे कदमो मे ठीकाना चाहे 

बात भूली सी तेरे दिल को याद दिलाना चाहे 
बिना बात के रुठे हुए हमदम को मनाना चाहे 

जो अनकही सी बाते है दिल आज बताना चाहे 
गुमनाम सी गलियो मे दिल फिर जाना चाहे 

 दिल अपनी कहानी किसी कदरदान को सुनना चाहे 
"पूजा" भी इस जहां मे एक खास जगह बनाना चाहे 

आज फिर होने लगी है गुजरे दिनो कि बारिश 
फिर से आज दिल मेरा सडको पे नहाना चाहे 

पूजा तोमर