****मंजिल****
बहुत अजमा लिया वक़्त ने
अब वक़्त अजमाने के
दिन आ गए है
बहुत खाली ठोकरे हमने
अब मंजिल को पाने के
दिन आ गए है
बहुत सुन लिया और सह लिया
अब सबको सुनाने के
दिन आ गए है
अब सब कुछ सरेआम रख दो
अब लूटने-लूटाने के
दिन आ गए है
अब छोड दो रोना-रुलाना
अब हसने- हसाने के
दिन आ गए है
जो निगाहो से बदनाम करते थे
उनसे नज़रे चुराने के
दिन आ गए है
फिर से महकने लगी है फ़िज़ा
अब चमन को सजाने के
दिन आ गए है
चलो फिर से कही दिल लगाये
अब दिल को लगाने के
दिन आ गए है
पूजा तोमर
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteसकारात्मक सोच और विश्वास की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteदिन तो एक ना दिन बदलने ही थे
बदलाव के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें
sada ji sukriya
ReplyDeleteveena ji pritikriya dene ke liye dil se sukriya
ReplyDeletedeepak aapko meri rachana acchi lagi thanks
ReplyDeletebahut kahli thokre hamne...........
ReplyDeletewaah bahut khub .....kya baat hai ...
pooja ji bilkul sache man se likhi gayi kavita......
thanks amerndra ji
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