Monday, December 20, 2010

****आदत****

कैसे बहलाओ मै खुद को भला कभी-कभी 
महफ़िल मे भी दिल की वीरानी नही जाती 

मैने माना तुम सही कह् रहे हो मगर
कभी-कभी सही बात भी मानी नही जाती  

मै देखती हूं तुम्हे रोज़ मगर कभी-कभी 
अपनो की सूरत  भी पहचानी  नही जाती 

कभी-कभी लाख कौशिश कर लो 
मगर दिल की परेशानी नही जाती 

दिल भी जनता क्या बुरा है क्या भला 
मगर कभी-कभी आदत पुरानी नही जाती 



पूजा तोमर

4 comments:

  1. हमेशा की तरह बेहतरीन गजल
    वाह वाह वाह

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  2. दिल भी जनता क्या बुरा है क्या भला
    मगर कभी-कभी आदत पुरानी नही जाती
    kuch baatein dil ko chu jati hai waise hi ye line dil ko chu gayi ........Badhai

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  3. amrendra ji aap padete hai mujhe bahut accha lgta hai

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