हाले दिल
पर भला कैसे इकरार
करू
वो तो खुशबू है उसे
कैसे गिरफ्तार करू
तू मेरी सांस के साथ
आता जाता है
मैं कितना और कैसे
खुद पर इख्तियार करू
चाँद भी मुझको देखकर
तड़पता होगा
ऐ खुदा तू ही बता मैं कैसे
हाले दिल का इज़हार करू
मै उसे सोचती हूँ
चाहती हूँ पूजती भी हूँ
कितना और कब तक मै
उसका इंतज़ार करू
मुझे हर वक़्त,हर जगह
वही नज़र आता है
जिसने छीना है चैन मेरा
उसे कैसे बेकरार करू
कितनी खामोशी से अफ़साने बयां कर देती हैं आप। हर कविता में नदी की रवानगी है,फ़ूलों की मासूमियत है,चांद की शीतलता है। हर शब्द के मानी बदल जाते हैं।
ReplyDeleteReally Heart Touching.
ReplyDeletewow.............really nice
ReplyDeletekya kahu yaar shabd nahi hai abhi mere paas.......really