****आज़ादी****
कहा खो गई वो हमारी आज़ादी
जिसके लिये वीरो ने जान तक गवा दी
मुझे मिली थी एक दिन किसी कोने मे
मैने पुछा क्या हुआ?
तो रुकर बोली मुझे बचालो
मेरे पीछे लगे है आतंकवादी
मै बोली तुम्हे और किससे डर है?
बोली मेरे दुश्मन और भी बहुत है
राजनीति,भ्रष्टाचार, जातिवाद, महगाई
और गरीबी इन सब ने भी की है मेरी बर्बादी
मेरे रक्षक ही नपुंषक है
खुद के फयादे के लिये वीरो की
कुर्बानी भी खाक मे मिला दी
कभी असम,कभी कश्मीर मे
रोज़ बलात्कार मेरा होता है
कोई ना कोई रोज़ मुझे खोता है
चन्द टुकडो के लिये मेरी ही
नीलामी करवा दी
मै बोली तुझे तेरा हक मै दिलवाउंगी
तुझे इस डर से आज़ाद मै करवाउंगी
ये सुनकर बोली इसी आशा मे
ज़िन्दा हो बेटी वरना मेरी कबर तो कब
की नेताओ ने खुदवा दी
यही सोच कर ये कविता लिखी है
इस मै मे मै अकेली नही
सब साथ मेरा देना
फिर ही कभी हस पायेगी हमारी अज़ादी
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