****फ़ितरत****
अब नहीं कुछ उससे लेना-देना,
हर कर्ज़ अदा कर चुके हैं हम
अब बचने की सूरत ही नहीं,
कातिल को रकम अदा कर चुके हैं हम
अब कुछ नहीं पास बचा हमारे,
सब निसार रहे वफ़ा कर चुके हैं हम
अब किस की राह तके बता दो,
हर शख्स को खफ़ा कर चुके हैं हम
अब न होगी हमसे दोबारा यारों,
एक बार जो खता कर चुके हैं हम
अब उसको इल्जाम क्या देना,
उसकी फ़ितरत का पता कर चुके हैं हम
अब हो जायेगा जो होना है,
हर बात का उससे गिला कर चुके हैं हम
अब क्या उम्मीद करें ,
चाहत का खतम सिलसिला कर चुके हैं हम
अब कुछ हासिल न होगा,
यही सोचकर राह जुदा कर चुके हैं हम
अब नहीं कोई वास्ता,
इस दुनिया से खुद को गुमशुदा कर चुके हैं हम
पूजा तोमर
पूजा जी बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने
ReplyDeleteअब क्या उम्मीद करें
चाहत का खतम सिलसिला कर चुके है हम
वाह! वाह !
sukriya sukriya
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन रचना, बधाई ।
ReplyDeletesada ji aapka sukirya
ReplyDeleteSundar kavita ke liye badhayi.
ReplyDeleteगजब कि पंक्तियाँ हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
verma ji sukriya
ReplyDeletesanjay ji sukriya
ReplyDeletelakshmi ji sukriya
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