****अग्नि -परीक्षा****
अब बसने दे मेरा घर बहुत दिल जलाकर
देख लिया
अब मिलाने दे नजरो से नजरे बहुत नजरे चुराकर
देख लिया
जो न देखा हमने सनम तुझसे दिल लगाकर
देख लिया
क्या होता है सच्चा प्यार तूझे अपना बनाकर
देख लिया
अब मुझे देने दे अग्नि -परीक्षा तुझे तो आजमाकर
देख लिया
पूजा तोमर
अच्छी कोशिश है पूजा जी बस लिखने का क्रम जारी रखिये। बुरा नहीं मानते हुए सम्भव हो तो "अग्नी" को "अग्नि" कर दें। लेखन एक सतत सीखने की प्रक्रिया है अतः इस सम्बन्ध में और भी परस्पर परामर्श किए जा सकते हैं। यदि उचित लगे तो सम्र्पर्क करें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत अच्छा लिखा है|
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteनवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteVERY=VERY NICE..........
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeleteBEST
ReplyDeleteजैसा की सुमन भाई ने कहा है, वर्तनी का थोडा ध्यान रखे, प्रोफाइल में भी कुछ मात्राएँ गड़बड़ लग रही है..
ReplyDeleteबाकी सब बढ़िया है.. लिखते रहिये ...
प्रारंभिक काल का अच्छा प्रयास है
ReplyDeleteउज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं.
सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteभावनाएं शब्दों में समाने लगी हैं...
ReplyDeleteबस लिखती रहिए.
aap sabka bahut bahut sukriya aap sahi keh rahe hai me kuch galati karo to kripya mujhe batayega jaroor kyonki aapke vichar aru sujhab he mere sabse bada guru hai
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