Friday, September 10, 2010

****मेरी मोहब्बत**** 
 
हम भी उससे जुदा होकर जीना नही चाहते थे 
मगर किसी और को भी मुझसे अरमान बहुत है 

कैसे छोड दो मै  जीना 
मेरे आस - पास आज भी 
इन्सान बहुत है 

वो ही ना समझा मोहब्बत को  
वरना सच्ची मोहब्बत के कदरदान बहुत है 

मेरी तो ज़िन्दगी वही था
कह कर जिसने ये ठुकरा दिया  
मुझ पर तो और भी मेहरबान बहुत है

हम ही नही भूल पा रहे उसे 
उसके लिये तो ये आसान बहुत है 



पूजा तोमर

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