Wednesday, September 22, 2010



***क्या किजिए दिल का***

क्या करु मै दिल का
इसका तो इश्क़ खुदा है

रहता है मेरे अन्दर
पर मुझ से जुदा है

जितना भी सीच लो इसको
ये तो ना फूला है ना फला है

इसको फूलोँ से क्या लेना देना
ये तो काँटोँ की राह चला है

खुद से होता है ये खुश
करता खुद से ही गिला है

उसको ही समझ लिया अपना
जो इससे हस के मिला है


छोडो भी क्यूँ वक्त बर्बाद करेँ
दिल पर किसका जोर चला 
है

पूजा तोमर

 

8 comments:

  1. बहुत ही मार्के की बात लिखी है कविता में.....पूजा जी !
    दिल की बात समझाना आसान नहीं........एक गीत बोल याद आये:

    "समझने वाले समझ गए, जो ना समझे वो अनाडी है"

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  2. जो विगत इतिहास के पन्नो में जाकर सो गया था
    चेतना की झील के गहरे भंवर में खो गया था
    पुष्प जिन स्मृतियों के हम विसर्जित कर चुके थे
    भाव श्रद्धा के जिन्हें हम सब समर्पित कर चुके थे
    हो गया था इक जमाना जिसकी बीती बात को
    नींद से उसने जगाया आज आधी रात को

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  3. आपने कविता अच्छी लिखी हॆ इसमे कोई शक नही...आपके भाव भी लाजवाब हॆ पर हिन्दी लेखन के समय थोडी त्रुटि हो गई हॆ...आप समझदार हॆ अत: आशा करता कि आप उन गलतियो को दूर कर सकेगी..

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  4. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी कविता
    हर उस व्यक्ति के मन की बात जो अपनी गलियों चौराहों से अपनों से दूर है

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  5. ashish ji aapko bahut bahut sukriya aur me kaushish karongi ki aur bhi accha likho

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  6. aapko padkar ek hi ehsash hua ki aisa wohi likh sakta hai jisne atma sey pyar ko mahsush kiya ho. ishwar apko shakti de.aise hi likhte rahiye

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  7. chandra pratap ji aapka sukriya mujhe samjhne ke liye

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