Tuesday, November 16, 2010

****मंजिल**** 

बहुत अजमा लिया वक़्त ने 
अब वक़्त अजमाने के 
दिन आ गए है

बहुत खाली ठोकरे हमने 
अब मंजिल को पाने के
 दिन आ गए है

बहुत सुन लिया और सह लिया 
अब सबको सुनाने के 
दिन आ गए है

अब सब कुछ सरेआम रख दो 
अब लूटने-लूटाने के 
दिन आ गए है

अब छोड दो रोना-रुलाना 
अब हसने- हसाने के 
दिन आ गए है

जो निगाहो से बदनाम करते थे 
उनसे नज़रे चुराने के 
  दिन आ गए है 

फिर से महकने लगी है फ़िज़ा 
अब चमन को सजाने के 
दिन आ गए है

चलो फिर से कही दिल लगाये 
अब दिल को लगाने के 
दिन आ गए है

पूजा तोमर

8 comments:

  1. सुन्‍दर रचना ।

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  2. सकारात्मक सोच और विश्वास की सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. बेहतरीन रचना के लिए बधाई
    दिन तो एक ना दिन बदलने ही थे
    बदलाव के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें

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  4. veena ji pritikriya dene ke liye dil se sukriya

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  5. deepak aapko meri rachana acchi lagi thanks

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  6. bahut kahli thokre hamne...........
    waah bahut khub .....kya baat hai ...
    pooja ji bilkul sache man se likhi gayi kavita......

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