Tuesday, October 5, 2010

****बारिश**** 

हम हसीयत अपनी जमाने मे बढना चाहे 
एक मुसाफ़िर तेरे कदमो मे ठीकाना चाहे 

बात भूली सी तेरे दिल को याद दिलाना चाहे 
बिना बात के रुठे हुए हमदम को मनाना चाहे 

जो अनकही सी बाते है दिल आज बताना चाहे 
गुमनाम सी गलियो मे दिल फिर जाना चाहे 

 दिल अपनी कहानी किसी कदरदान को सुनना चाहे 
"पूजा" भी इस जहां मे एक खास जगह बनाना चाहे 

आज फिर होने लगी है गुजरे दिनो कि बारिश 
फिर से आज दिल मेरा सडको पे नहाना चाहे 

पूजा तोमर 

2 comments:

  1. bahut bahut achha likha aapne aur bahut hi pyara ek ek shbad bayan karta khud ko khub bahut khub

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