पर्वत
मेरा क्या बिगाड़ेगी भला आंधिया........
मेरे आँगन के पेड़ से रोज गिरती है सुखी पात्तिया,
उनके गिरने से ही चलती है पेड़ की दुनिया.......
नदी को देखो अपनी मौज मे ही चलती रही,
पत्थर से टकराकर मरती रही मछलिया....
गिरके रस्सी से गिर के नट तड़पता रहा,
लोग बजाते रहे तालियाँ........
मेरी शायरी है सूरज,
मै हो उसकी किरण,
मुझे क्या रोकेंगी,
कांच की खिडकिया..........
सुख दुःख दोनों ही है,
जीवन के पहलू,
दोनों ही लाते है तब्दीलियाँ........
मेरा जीवन भी कुछ ऐसा ही है,
गम ख़ुशी दोनों से है,
मेरी नजदीकियां.........
मुझ पर हर मौसम ने वार किया,
मैंने खुद को हर बार तैय्यार किया,
अब तो साथी बन चुकी है परेशानिया.......
मुझे गमो ने पर्वत बना दिया है,
मेरा क्या बिगाड़ेगी भला आंधिया........
पूजा तोमर
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