Tuesday, October 19, 2010

****फ़ितरत**** 

अब नहीं कुछ उससे लेना-देना, 
हर कर्ज़ अदा कर चुके हैं हम 

अब बचने की सूरत ही नहीं, 
कातिल को रकम अदा कर चुके हैं हम   

अब कुछ नहीं पास बचा हमारे, 
सब निसार रहे वफ़ा कर चुके हैं हम 

अब किस की राह तके बता दो, 
हर शख्स को खफ़ा कर चुके हैं हम   

अब न होगी हमसे दोबारा यारों, 
एक बार जो खता कर चुके हैं हम 

अब उसको इल्जाम क्या देना, 
उसकी फ़ितरत का पता कर चुके हैं हम   

अब हो जायेगा जो होना है, 
हर बात का उससे गिला कर चुके हैं हम 

अब क्या उम्मीद करें , 
चाहत का खतम सिलसिला कर चुके हैं हम   

अब कुछ हासिल न होगा, 
यही सोचकर राह जुदा कर चुके हैं हम 

अब नहीं कोई वास्ता, 
इस दुनिया से खुद को गुमशुदा कर चुके हैं हम    

पूजा तोमर 

9 comments:

  1. पूजा जी बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने

    अब क्या उम्मीद करें
    चाहत का खतम सिलसिला कर चुके है हम

    वाह! वाह !

    ReplyDelete
  2. सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन रचना, बधाई ।

    ReplyDelete
  3. गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

    ReplyDelete