Monday, October 11, 2010

****अग्नि -परीक्षा****

अब बसने दे मेरा घर बहुत दिल जलाकर 
देख लिया

अब मिलाने दे नजरो से नजरे बहुत नजरे चुराकर 
देख लिया


जो न देखा हमने सनम तुझसे दिल लगाकर 
देख लिया 

क्या होता है सच्चा प्यार तूझे अपना बनाकर 
देख लिया 

अब मुझे देने दे अग्नि -परीक्षा तुझे तो आजमाकर
देख लिया 

पूजा तोमर 

12 comments:

  1. अच्छी कोशिश है पूजा जी बस लिखने का क्रम जारी रखिये। बुरा नहीं मानते हुए सम्भव हो तो "अग्नी" को "अग्नि" कर दें। लेखन एक सतत सीखने की प्रक्रिया है अतः इस सम्बन्ध में और भी परस्पर परामर्श किए जा सकते हैं। यदि उचित लगे तो सम्र्पर्क करें। शुभकामनाएं।
    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. बहुत अच्छा लिखा है|

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  3. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  4. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  5. जैसा की सुमन भाई ने कहा है, वर्तनी का थोडा ध्यान रखे, प्रोफाइल में भी कुछ मात्राएँ गड़बड़ लग रही है..
    बाकी सब बढ़िया है.. लिखते रहिये ...

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  6. प्रारंभिक काल का अच्छा प्रयास है
    उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं.

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  7. भावनाएं शब्दों में समाने लगी हैं...
    बस लिखती रहिए.

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  8. aap sabka bahut bahut sukriya aap sahi keh rahe hai me kuch galati karo to kripya mujhe batayega jaroor kyonki aapke vichar aru sujhab he mere sabse bada guru hai

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