Saturday, July 17, 2010

मेरा वक़्त

मेरा वक़्त कुछ इस तरह मेरा इंतेहान लेता है,
पेरो से ज़मीन और सर से आसमान लेता है.........

इस वक़्त ने ही ये सिखाया है,
कैसे मुश्किलों से लड़ा जाता है,
वो हर मोड़ पर काटे देकर जान लेता है....

किस किस को अपनी कहानी कहो,
कैसे जिंदा लाश बनकर में रहो,
कहती हो हर किस को अपनी कहानी,
जब कोई नया मकान लेता है......

मैं जानती हू सच क्या है,
मगर यहाँ हर कोई गलत बयान देता है....

मैं छाव मांगो तो धुप मिलती है,
मैं धुप मांगो तो छाव देता है....

मैं हर काम दिलो जान से करती हू,
पर वक़्त इसे एक अलग ही अंजाम देता है....

यूँ तो आदत सी पड़ गई है,
मगर हर बार ये मुझे भीड़ की जगह मुर्दों का शमशान देता है.....

मेरा वक़्त कुछ इस तरह मेरा इंतेहान लेता है,
पेरो से ज़मीन और सर से आसमान लेता है.........


पूजा तोमर

4 comments:

  1. बहुत खूबसूरत ब्लोग की बहुत खूबसूरत कविता. हर शब्द तराशा हुआ.गहरे भावों कॆ सरल अभिव्यक्ति.सादगी और सच्चाई का अद्भुत मेल.

    मेरा वक़्त कुछ इस तरह मेरा इंतेहान लेता है,
    पेरो से ज़मीन और सर से आसमान लेता है..
    बहर में बांधों तो गज़ल का कितना खूबसूरत मतला बन जाता है.प्रूफ़ की सामान्य गलतिया भी दूर हो जाती तो और भी अच्छा रहता. खैर..!

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  2. aap mujhe sikhate rahiye aur hum sikhte rahenge

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  3. राजा बोला रात है
    मंत्री बोला रात है
    संतरी बोला रात है
    और ये सुबह सुबह की बात है ......

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  4. mukanda ji aap bahut accha likhte hai

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