Monday, July 19, 2010

बनना चाहती हूं

मै एक दीपक बनना चाहती हूं ,
खुद जलकर दुनिया को रोशन करना चाहती
हूं ............

रास्ते मै एक कुटिया है,
उसमे एक छोटी सी एक बिटिया है,
उनके चहेरे पर मुस्कान देखे सदिया बीत गयी,
मैं उनके चेहरे की मुस्कान बनना चाहती
हूं ................

एक बच्चा जो उम्र से पहले बड़ा हो गया,
न चाहते हुए भी पेरो पर खड़ा हो गया,
जो खुद छोटा है काम बड़ा करता है,
जो उसे उसका बचपन लौटा सके,
वो इंसान बनना चाहती
हूं ................

एक औरत जो दहेज़ के आड़ मै पिटती है,
रोज अपने ही घर मै घुटती है,
उसे उसका हक़ जो समझा सके,
वो इन्साफ बनना चाहती
हूं ................

एक मां बाप जो आज भी औलाद के इंतज़ार मे है,
और औलाद पैसे के खुमार मे है,
जो उनको माँ बाप की अहमियत समझा सके,
वो संस्कार बनना चाहती
हूं...................

आज गरीब दो वक़्त की रोटी के लिए तरस रहा है,
महगाई का कहर दिन व दिन बरस रहा है,
जिसे हर गरीब सुनना चाहता है,
वो समाचार बनना चाहती
हूं .................

मै एक दीपक बनना चाहती हु,
खुद जलकर दुनिया को रोशन करना चाहती
हूं ............

पूजा तोमर

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