Sunday, August 1, 2010

*****चात*****

औरो के लिये जीते जीते
मै अपने लिये ही जीना भूल गई
अब अपने लिये जीना चाहती हूं
पूरा ना सही कुछ पल जीना चाहती हूं

इस वक़्त की रफ़्तार ने मुझे बहुत भगाया है
मैने खुद को अकसर तन्हा पाया है
मुझे वक़्त ने बहुत मोडा
अब मे वक़्त को मोडना चाहती हूं

जब पीडा मन की बड गई
मै खुद से ही लड गई
बहुत हुई खुद से लडाई
अब विश्राम चाहती हूं

मेरा जीवन बडा कीमती है
ऐसे ना गवाउंगी
मै अपने आप को नही
दुनिया को बदलना चाहती हूं

पूजा तोमर

3 comments:

  1. दिल में अब मुहब्बत के वो ख्यालात नहीं हैं,
    अश्कों में सब बह गए कोई जज़्बात नहीं हैं,

    रिश्तों की भीड़ में खुद से अजनबी हूँ इस कदर,
    दोस्तों को पहचान सकूँ वो नज़र साथ नहीं हैं..!

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  2. jindagi me kabhi kabhi bas oro ke liye bhi jina padta hai.....

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  3. auron ke liye jeete jeete......apne liye jeena bhool gayi,,,,, bahut sundar

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