Sunday, August 8, 2010

****आरजू****

बात निकली है तो फिर, बात के पहलू निकले
हमसे रुठा जो वो, तो गजल कहने के मौजू निकले

झूठी तारीफ़ को सुनकर हुये गैरो के दोस्त
हमने सच बोला तो महफ़िल से तेरी हम निकले

फ़ेसबुक, आरकुट, जी- टाक, रेडीफ़, टविटर और याहू
दिल को बहलाने के क्या-क्या नये पहलू निकले

दिल को भाया जो, गुलाबो मे एक गुलाब है वो
उसके साये मे भी ज़ार नुकीले निकले

ओढ कर मखमली चेहरे है मिले सब मुझसे
हम जो दुनिया मे कभी दोस्त बनाने निकले

रात भर जागे तेरी यादो के झुरमुर के साथ
तब कही जाके ये अल्फ़ाज़ सुहाने निकले

है दुआ रब से वो कर दे मुझे तुझ से मन्सूब
आरजू है तेरी बांहो मे मेरा दम निकले

पूजा तोमर

2 comments:

  1. beautiful .....tells the reality....
    दिल को बहलाने के क्या-क्या नये पहलू निकले

    very rhythmic and truthful....
    loved reading....

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  2. लोग अपनों से नाता तोड़ देते हें,
    रिश्ता कैसे गैरों से जोड़ लेते हें,

    हमसे एक फूल तोडा नहीं जाता,
    नाजाने लोग दिल कैसे तोड़ देते हें..!

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