Saturday, August 7, 2010


बकरे की कहानी

मैने जब इस दुनिया मे जन्म लिया तो मै बहुत खुश था, मालिक और मालिक के बच्चे मुझे बहुत प्यार करते थे।मुझे ये सब देखकर बहुत अच्छा महसुस होता था मै बस बेफ़ीकर होकर इधर-उधर घुमता रहता और ढेर सारी हरी-हरी पत्तिया और चारा खाता जब थोडा सा थक जाता तो मां के पास आकर सो जाता। मालिक के एक बेटी गुन्जा थी उसने मेरा नाम भी रख दिया हीरा, अब क्या वो मुझे हीरा कह - कह कर मेरे पीछे भागती रहती और मै उसे परेशान करता। वो मुझे अपने साथ सुलया भी करती। मुझे कभी-कभी उसकी सेहलिया भी देखने आती और मुझे देखकर बहुत खुश होती, मेरे साथ खेलती और मेरी तारीफ़ भी करतीमेरा खूब अच्छी तरह ध्यान रखती। मै मां का दुध पी-पी कर और इतना सारा प्यार पाकर खूब मोटा हो रहा था। बस ऐसे ही ज़िन्दगी चल रही थी और मुझे ये दुनिया बहुत अच्छी लग रही थी।

एक दिन ऐसा भी आया जिसने मेरी हस्ती-खेलति दुनिया बर्बाद करदी। एक लम्बी सी गाडी आई और मेरे ना चाहते हुये भी मुझे मेरी मां से दूर ले गयी समझ ही नही पाया की मेरे साथ आखिर हुआ क्या? मै बस रोते हुए चुपचाप ये सब देख रहा था। गुन्जा फुट-फुट कर रो रही थी ऐसा लग रहा था की मै इन सबको आखिरी बार देख रहा था।

फिर मुझे बडी ही दयनियता के साथ उस गाडी मे फेंक दिया। मै वहा अकेला नही था मेरे साथ ना जाने कितने ऐसे थे जो अपने पीछे अपनी मां और गुन्जा को छोड आये थे। उस गाडी मे इतनी भी जगह नही थी की सही से खडा हो पाता मेरा दम घुट रहा था। गाडी चालक कह रहा था की आज तो एक बडा ही अच्छा शिकार हाथ आ गया, ये सुनकर बहुत असहज हसुस हो रहा था। फिर गाडी एक गन्दी सी जगह आ कर रुक ग

गाडी के दरवाजे खुले और मैने देखा आस-पास बडी गाडीयो मे बहुत से मेरे जैसे लाये जा रहे थे, और गाडीयो मे मांस लाधा जा रहा था देखने पर लग रहा था जैसे मे किसी दुसरी दुनिया मे आ गया हूं, जहां पानी का भी रंग अलग था कुछ लाल-लाल। फिर दो बडे-बडे यमराज जैसे आदमी आये और मुझे खींच के ले गये। मुझे रस्सी से बांध कर दो दिन वहा रखा गया वहा खाना भी रुखा-सुखा मिला मगर
मेरे हलक से तो डर के कारण कुछ अन्दर ही नही जा रहा था। मेरा शरीर भी कंकाल बनता जा रहा था।

फिर एक आदमी मुझे खोलने आया लग मै अब इस कैद से आजाद होने वाला हूं पर अगले ही पल मेरे होश उड गये मुझे किसी तेज धार वाली चीज़ के नीचे खडा कर दिया गया। वहा आस-पास मुझे अपने जैसे दो हिस्सो मे कटे पडे हुये नज़र आ रहे थे और खून की नदिया बह रही थी। मुझे साफ़-साफ़ मेरा अंत नज़र आ रहा था पर कितना भयानक होगा ये सोच कर मै अन्दर ही अन्दर सुख रहा था।

अरे क्या मेरी गर्दन के उपर वो चीज़ गिरने वाली है। मेरे दो हिस्से हो गये पर मै मरा नही हूं अभी और दर्द जो सेहना है मुझे अधमरी हालत मे एक गन्दे कौने मे फेक दिया गया, मेरे गर्दन से खून पानी की धार बनकर बह रहा था बस अब तो प्राण निकलने बाकी थे। मन ही मन एक आवज़ निकल रही थी की ये सब दुख देने के लिये ही मालिक ने पला पोसा था इतना प्यार किया था, है भगवान अब और नही सही जाता मुझे इस शरीर से मुक्ति दे दे। वो दर्द इतना असहनीय था की वयाख्या नही कर सकता अब मेरी आंखो के सामने मेरा पूरा जीवन आ गया था आंखो से आंसु बह रह थे धीरे-धीरे सब अन्धेरे के हवाले हो रहा थामां, गुन्जा सबको आखिरी बार देखने की इच्छा के साथ मेरी आंखे बन्द हो गये उस पीडा से मुक्ति मिल

अरे ये क्या मै तो बिल्कुल ठीक हूं पर मेरे शरीर को तो काटा जा रहा है, मैने अब शरीर को छोड दिया था। मेरी खाल को और दूसरे अंगो को अलग करके, हिस्सो मे बांटकर थैलियो मे पेक कर दिया गया और गाडी मे भर दिया। मै उस गाडी के पीछे चल दिया जिसमे मेरा मांस था वो गाडी एक होटल के सामने रुकि और कुछ मांस के पेक्ट वहा दे दिये गये। अब मुझे धोया गया , तेल मे जलया मतलब पकाया गया तरह-तरह के मसाले डाले गये ताकी मेरी मौत को मसालेदार बनाया जा सके। अब मे दूसरो के शाम रंगीन या कह सकते हो पेट की भूख मिटाने के लिये तैयार था।

मैने देखा एक सुन्दर जोडा वहा आया और उनके सामने मुझे भोजन के रूप मे पेश किया गया। वो दोनो बडे चाव से मेरे मांस को खा रहे थे जैसे मेरा शरीर बस स्वाद के लिये था किसी को मेरे दर्द और प्यार से कोलेना-देना नही था , मनुष्य के दो चेहरे देखने को मिले एक गुन्जा और एक ये लोग, कितना अन्तर है दोनो में।

ये सब सोच ही रहा था की एक अवाज़ आई, क्या सोच रहा है, तू भी कुछ समय पहले ये काम कर रहा था इस की ही सज़ा हे की तेरा ये हाल हुआ है और ये कोइ और नही बल्कि तेरे पिछले जन्म का बेटा है अब आगे चलकर इसे भी यही सब भोगना पडेगा, क्योकि ये भी वही कर रहा है जो तूने किया। मैने कारण पुछा तो वही से अवाज़ आई तूने अपने स्वाद के लिये के जीव को कितना कष्ट दिया ये तू तब ही समझ पाता जब तूझे ये कष्ट मिलता, और इनको भी इस कष्ट की अनभूति करनी पडेगी । मै अब सब समझ गया था मैने हाथ जोड कर विनती की ये सजा इनको मत देना इन्होने मेरा मांस खाया है और मै इन्हे कोइ सज़ा नही देना चाहता । फिर अवाज़ आई चल तेरी ये बात मान लेता हूं। पर हमेशा ये बात याद रखना की जीवन और मौतका हक़ सिर्फ़ मुझे है किसी और को नही, इसलिये किसी को कभी भी किसी को भी कष्ट नही देना चाहिये।

अब मैने मन ही मन ठान ली थी की कुछ ऐसा नही करुगां जिससे कभी किसी को भी कोई भी कष्ट पहुचे या मुझे और मेरी आने वाली संतानो को कोई दुख भोगना पडे। बस फिर कुछ ही पलो मे उस अवाज़ की और खीचा चला गया और उसमे लीन हो गया।


पूजा तोमर

1 comment:

  1. अच्छी है.बधाई हो. कहानी की दुनिया में आप का स्वागत है.

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