Monday, August 2, 2010

हाले दिल

बड़ी बेचैन हू मै
पर भला कैसे इकरार
करू
वो तो खुशबू है उसे
कैसे गिरफ्तार करू

तू मेरी सांस के साथ
आता जाता है
मैं कितना और कैसे
खुद पर इख्तियार करू

चाँद भी मुझको देखकर
तड़पता होगा
ऐ खुदा तू ही बता मैं कैसे
हाले दिल का इज़हार करू

मै उसे सोचती हूँ
चाहती हूँ पूजती भी हूँ
कितना और कब तक मै
उसका इंतज़ार करू

मुझे हर वक़्त,हर जगह
वही नज़र आता है
जिसने छीना है चैन मेरा
उसे कैसे बेकरार करू

पूजा तोमर

3 comments:

  1. कितनी खामोशी से अफ़साने बयां कर देती हैं आप। हर कविता में नदी की रवानगी है,फ़ूलों की मासूमियत है,चांद की शीतलता है। हर शब्द के मानी बदल जाते हैं।

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  2. wow.............really nice
    kya kahu yaar shabd nahi hai abhi mere paas.......really

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