Friday, August 6, 2010

****किस्से****

किस किस से छिपाऊं मै
हज़ारो किस्से बयां होते है
मेरी घुटती सी आहं मे

मैने गमे- इश्क़ को छिपाया अक्सर
मगर सब साफ़ दिखता है
अश्कों से धुली निगाह मे

किसको समझूं अपना किसे बेगाना
हर कोई हसंकर मिलता है
ज़िन्दगी की राह मे

बिना रुके ही चला गया वो लम्हा
ज़िन्दगी गुजार दी मैने
जिस की चाह मे

ज़िन्दगी तो उसके साथ ही चली गई
अब तो गुजर रही है उम्र
मौत की पनाह मे


पूजा तोमर

3 comments:

  1. wow...pooja ji....bahut achchhe shabd....
    बिना रुके ही चला गया वो लम्हा
    ज़िन्दगी गुजार दी मैने
    जिस की चाह मे...
    loved it....

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  2. किस किस से छिपाऊं मै
    हज़ारो किस्से बयां होते है
    मेरी घुटती सी आहं मे
    ज़िन्दगी तो उसके साथ ही चली गई
    अब तो गुजर रही है उम्र
    मौत की पनाह मे
    Lajawaab rachna,,,,badhai sweekar karen

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