Monday, August 2, 2010

****सावन की पहली बूंद****

जब तपती धरती के आँचल मे
पहली बूंद गिरी थी
अन्दर तक सीना चीर गई थी
वो सावन की पहली बूंद

खुद मिटकर भी उसे
जीवन दे गई थी
वो सावन की पहली बूंद
एक बाँझ को अंकुरित कर गई थी
हर पत्ते मे हरयाली भर गई थी
वो सावन की पहली बूंद

सारी जलन, सारी तपन
को मिटा गई थी
धरती के साथ- साथ अम्बर
को भी खिला गई थी
वो सावन की पहली बूंद

कोई गड्ढा भी खाली नहीं था,
जंगल भी भर गए थे
मेरे आँगन मे गिरके
मेरे मन को भी महका गई थी
वो सावन की पहली बूंद

जब पक्षी भी नाउम्मीद हो गए थे
प्यास से सब रो रहे थे
फिर काली घटा छाई
अपने साथ हजारो उम्मीदे लाई
वो सावन की पहली बूंद

सावन की वो पहली बूंद ज़िंदगी दे
न जाने कहां-कहां फना हूई थी
मेरे साथ-साथ सबको भीगा चुकी थी
वो सावन की पहली बूंद

उस पहली बूंद का
ना क़र्ज़ चुका पाऊंगी
जब भी नाउम्मीद होंगी
आँखों मे पाऊंगी
वो सावन की पहली बूंद

उस पहली बूंद को सलाम करती हू
यादो मे आज भी घूंट घूंट पिया करती हू
वो सावन की पहली बूंद


पूजा तोमर

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